Pishach Ki Kahani: पैशाचिक मशीन [ दूसरा भाग ] [Part-2]
Pichas Ki Kahani: Paishachik Machineपिशाच की कहानी: पैशाचिक मशीन (02)
शुरुवात की कहानी जानने के लिए पैशाचिक मशीन भाग 1 को इस लिंक पर क्लिक करके पढ़ें |
[भाग-2
Part-2]
अब वह क्रशर से हटकर दूर खड़ा हो गया था। उसने अपनी गर्दन सारस की तरह आगे करके कार के बचे हिस्से देखने का प्रयास किया। पिचकायी धातु की चार फुट लम्बी व चार फुट चौड़ी चादर क्रशर के मुंह से निकल रही थी।
चारों ओर घूम-फिर कर जोसेफ ने चादर को सब तरफ से देखा, किन्तु उस पर रक्त का एक धब्बा भी नहीं दिख रहा था। वह क्रेन के पास जाकर उसके केबिन में जा घुसा।
क्रेन का पंजा पुनः नीचे आया और धातु के उस चौकोर टुकड़े को दबोच कर फिर से ऊपर उठाया। जोसेफ ने उसे पूरी ऊंचाई तक ले जाकर काठ-कबाड़ और अनेक ढांचों के पार ऐसे कोने में गिरा दिया, जहां पर जा पाना हर किसी के लिए सम्भव नहीं था। वह टुकड़ा उस ढेर तक पहुंच गया था, जहां अनेक पार्ट ऊपर-नीचे ढेर में पड़े हुए थे।
गहरी सांस लेकर वह सोच रहा था कि चलो छूटे तो सही! कबाड़ में धातु का यह फेंका गया टुकड़ा ऐसा मिल गया था कि अलग से पहचाना ही नहीं जा सकता था।
तभी क्रेन के क्रैब डोर के एकदम निकट से उभरी एक आवाज से वह हिलकर रह गया। उसका दिल जोर से धड़क पड़ा। उसने देखा कि वह चौकीदार था। जिसने उसे वह धातु का टुकड़ा फेंकते देख लिया था और पूछ रहा था-“आज काम ज्यादा था, सर?"
घबराहट में हकलाकर जोसेफ ने जवाब देना चाहा-“अ...हां...हां। यह व्यर्थ पड़ा स्थान घेर रहा था।"
सामान्य भाव से चौकीदार बोला-“यह काम तो जॉन का है?" वह कैब में चढ़ आया।
“कहते तो ठीक हो, किन्तु उस नालायक को मैंने आज नौकरी से निकालकर भगा दिया है..."
“ओह...अच्छा।"
कैब का बटन ऑफ कर जोसेफ नीचे उतरा तो चौकीदार भी नीचे उतरकर उसके पीछे चल पड़ा। वह यों ही बोला "कुछ दिन से जॉन काम पर ध्यान नहीं दे रहा था...।"
दोबारा आफिस में पहुंचते हुए जोसेफ ने अनुभव किया मानो उसके सर से कोई भारी बोझ उतर गया हो और वह बहुत हलका-फुलका हो गया हो। वहां बैठा कुत्ता भी खुलकर जोर की आवाज में भौंक रहा था उसका डर भी जाने कहां चला गया था। उसकी आवाज में भी जान आ गयी थी।
"पीने का मन है?"
सुनकर चौकीदार हैरत में रह गया। क्योंकि किसी के, विशेषतः श्रमिकों के साथ, जोसेफ का व्यवहार बहुत भद्दा होता था। आज उसका बर्ताव बिल्कुल आशा के विपरीत था। उसके दिल में ख्याल आया कि यह पहले ही अपने एक कर्मचारी को जवाब दे चुका है। कहीं अगला नम्बर मेरा न आ जाये। इसलिए सतर्कता आवश्यक है। अतः प्रत्युत्तर में उसने केवल सिर हिला दिया।
बहुत दिन बाद प्रसन्नमन जोसेफ ने मजे में चौकीदार की पीठ पर एक हल्का घूसा जमा दिया। उसकी नकली बत्तीसी बाहर आते-आते रह गई।
वह पूछ बैठा-"बड़े खुश नजर आ रहे हैं?"
“हां। मेरी एक मुसीबत टल गयी है। सही कह रहे हो कि आज मैं बहुत खुश।
लेकिन उसकी प्रसन्नता एक हफ्ते ही टिक सकी। क्योंकि उसे भयानक सपनों ने घेरना प्रारम्भ कर दिया। अजनबी के सामान को उसने जिस स्थान पर पटक रखा था, वहां पर जाने का उसे साहस नहीं हो रहा था। वहां पास से निकलता हुआ वह निश्चय करता था कि तुरन्त उसे हटवाना है।
लेकिन यह 'तुरन्त' नहीं बन पा रही थी। लेकिन हफ्ता ही बीता था जब यह देखकर उसकी प्रसन्नता का ठिकाना न रहा कि वहां से अजनबी का सामान हटकर साफ हो चुका था।
इससे उसे बड़ी राहत सी मिली। वैसे उसने किसी से ऐसा करने को कहा नहीं था जैसा कि उसकी आदत थी, उसी के अनुरूप आम हालात में तो शायद वह ऐसा करने वाले की फजीहत कर देता। लेकिन आज उसने प्रसन्न मन से ऐसा करने वाले के बारे में पूछा था।
लेकिन आश्चर्य! उसके चार नौकर थे और चारों नौकरों का एक ही उत्तर था कि हमने यह कार्य नहीं किया है। अच्छी तरह तसल्ली करने के बाद, कि किसी नौकर ने सफाई नहीं की है, जोसेफ परेशान हो उठा।
बात तो अजीब ही थी यह। प्रश्न यह उठना स्वाभाविक था कि वहां से सामान हटाया तो गया था, लेकिन किसने हटाया? लेकिन जाने क्या कारण था कि जिसने भी यहां सफाई की थी, वह बताने को तैयार नहीं था। जोसेफ ने भी ज्यादा जिद न की। यही काफी था कि कबाड़ हट चुका था।
जोसेफ शुक्रवार को प्रातः मुख्य कम्पाउंड में आया और धीरे-धीरे चलता हुआ अपने गोदाम के आफिस के निकट पहुंचा। लेकिन उसे कुछ अजनबी आशंका हुई। चौकीदार परेशान सा वहां खड़ा हुआ था। लगता था कि वह जोसेफ की प्रतीक्षा में था।
"क्या बात है, भाई?"
"सर! रात को चोर आये थे।" "कोई पकड़ा गया?"
"नो सर! कोई दिखा तो नहीं था। बस आवाज ही हुई थी।” चौकीदार ने बताया। फिर कुछ सोचकर बोला "शायद आपके कुत्ते के कारण नहीं टिक सके वह...।"
"कहां थे?"
"सर! वह कम्पाउंड के पीछे की ओर थे। लगता है कि वह कोई अनाड़ी की थे। क्योंकि जिस तरह वे कबाड़ा उठा-उठाकर इधर-उधर कर रहे थे, उससे बड़ा शोर हो रहा था। मैं उन पर झपटा था और डॉगी को भी दौड़ाया था। लगाता है कि कुत्ते के डर से भाग गये। लेकिन बहुत ज्यादा लाइट के होते भी मैं किसी को देख नहीं पाया था सर! वह बड़ी फुर्ती के साथ यहां से गायब हुए।
"अरे, कोई बच्चे होंगे।” जोसेफ ने कहा, फिर उसे यह भी सूझा' लेकिन मैं ऐसा परेशान क्यों हूं? माजरा क्या है? कुछ देर बाद उसने पूछा-“विंडो चैक की थी?"
"देखी तो थी...। वह पूरी तरह सही थी। हो सकता है कि चोर दीवार फलांग कर घुसे हों। जबकि उसे पार करना कठिन बल्कि बहुत संकटपूर्ण है। वहां लगाये गये बड़े कील-कांटे प्राणघाती भी हो सकते हैं। जरूर बड़े खतरनाक होंगे स्जिसने भी ये रिस्क लिया।
क्या पुलिस को सूचना दें?" चौकीदार ने पूछा
ताजा बनी गर्म चाय का घूंट भरते हुए जोसेफ ने कहा-“उह! क्या करेंगे? लेकिन आइन्दा सावधान रहना।"
वह चाय के घुट भरता हुआ विचारों में गुम था। अजनबी को निपटाकर उसने जो शांति अनुभव की थी, लगा जैसे वह फिर छिन गयी थी। परेशान मन से वह सोच रहा था-'आखिर यह हो क्या रहा है?'
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क्रेन और लीवर के साथ दिन में दो घंटे जूझा था जोसेफ। आज का दिन उस के लिए बहुत उबाऊ और थका देने वाला सिद्ध हुआ था। वह बड़ी थकान अनुभव कर रहा था। वह घर पहुंचा तो उसने तुरन्त बोतल निकाल ली और स्कॉच चढ़ाई। फिर टी. वी. देखता-देखता सो गया।
लेकिन वह चैन से सो भी न सका था, क्योंकि नींद के दौरान उसे भयानक सपनों ने परेशान किये रखा। कभी अपना कबाड़खाना उसे अंधेरों में घिरा नजर आता, कभी कम्पाउंड में खड़ी लम्बे कद की एक परछाई नजर आती। कभी क्रशर, कभी क्रेन और सबसे ज्यादा परेशान करती थीं घूरती हुई वे दो आंखें जिनसे मानो शोले बरस रहे हों।
जिस समय जोसेफ अजनबी की लाश को कार के ढांचे के साथ क्रशर में डालकर उसे धातु की चादर में बदल रहा था तो उसने उस दौरान क्रशर की आवाजों के साथ जो चीखें सुनी थीं, वह भी उसे अपने सपनों में सुनाई दे रही थीं, जो निरंतर उसके नजदीक आती जा रही थी और उनकी आवाज तेज होती जा रही थी।
अचानक वह चिल्लाता हुआ उठ बैठा। उसका हृदय तेजी से धक-धक कर रहा था। उसे लग रहा था कि वह अपने जंकयार्ड (कबाड़खाना) में मौजूद है। लेकिन थोड़ी देर बाद जब उसकी नींद ठीक से खुली तो वह अपने घर के कमरे में ही था।
वह टी. वी. देखता-देखता सोया था और इस समय भी टी. वी. चल रहा था। उसने सोचा-'लेकिन वह चीखें उसने कैसे सुनी थीं?' तभी मानो उसे कुछ ध्यान आया और बड़बड़ाया-'अरे नहीं-चीख नहीं, वह शायद फोन की घंटी थी शायद..."
वह थका-थका सा अपने बिस्तर से उठा तो उसका पैर, नीचे किसी चीज से टकराया जिससे वह औंधे मुंह फर्श पर जा गिरा। अपने को कोसता हुआ वह फिर से खड़ा हुआ
और आगे बढ़कर फोन रिसीवर उठाकर कान से लगा लिया। फोन पर उधर से चौकीदार की आवाज सुनाई दे रही थी "सारी सर! इस समय डिस्टर्ब किया, लेकिन आप इसी समय अपने ऑफिस में चले आयें।"
जोसेफ ने घड़ी पर दृष्टि डाली, रात का ढाई बजा था। वह झल्ला पड़ा-“क्या बद्तमीजी है?"
"डॉगी बहुत घायल है सर...।" “क्या...क्या कहा तुमने...मैं अभी आया।" कहते जोसेफ बहुत तेजी से उठकर अपने कबाड़ गोदाम की तरफ लपका। पूरा जंकयार्ड सदा की भांति प्रकाश में नहाया हुआ था। जहां इधर-उधर पड़े कबाड़ के पहाड़ लम्बी-लम्बी आकृतियां बना रहे थे। जिन्हें देखकर जोसेफ का खोया डर फिर से वापस आ गया था। वह इस समय स्वयं को बहुत थका हुआ और खाली अनुभव कर रहा था, जबकि वह इस समय नशे में नहीं था।
उसके मन में बसे खालीपन के बीच डर सिर उठा रहा था। वहां का गेट खुला पड़ा था। गेट उसके लिए चौकीदार ने खोला था।
जोसेफ की कार धूल उड़ाती हुई बहुत तेज गति से भीतर घुसी और पूरी स्पीड से ब्रेक दबे तथा कुछ दूर घिसट कर गाड़ी बंद हो गयी। भागता हुआ जोसेफ कार से निकला और चौकीदार के पास होता हुआ ऑफिस में जा पहुंचा। वह चौकीदार की आवाज को अनसुना कर आया था। आज पहली बार उसे लगा कि वह अपने कुत्ते को कितना चाहता है! वह उसे खोना नहीं चाहता था। जबकि उसे विश्वास हो चुका था कि कुछ ना कुछ गड़बड़ है।
टॉमी अपने मालिक को देखकर दर्दभरी आवाजें निकालने लगा। वह पहले से ही कराह रहा था। उसे चौकीदार ने टेबिल के पास कंबल पर लिटाया हुआ था।
खून और पसीने से टॉमी का बदन लथपथ नजर आ रहा था। जोसेफ ने आगे बढ़कर देखा कि उसके दोनों पैर घुटनों के पास से लगभग कट चुके हैं। चौकीदार ने टेप और लकड़ी की सहायता से उन्हें बांध रखा था। जबकि उसका यह प्रयास व्यर्थ था। उसके पैर शरीर से लगभग अलग ही हो चुके थे।
"माई गॉड!" उसके मुंह से बस यही निकला और वह घुटनों के बल टॉमी के पास बैठ गया। उसका बहुत सा खून बह चुका था। लग रहा था कि वह बस अब थोड़ी देर का ही मेहमान है। कुत्ते ने उसके हाथ को चाटा तो रोकना चाहते हुए भी जोसेफ के आंसू बह निकले।
"हुआ क्या था?" बेचैनी से जोसेफ ने पूछा।
“सर! मैं तो यहां अब काम नहीं कर पाऊंगा...। यह अवश्य ही कोई अजीब मामला है। साफ सुन लीजिए।"
"टॉमी के साथ तुमने क्या कर डाला?" जोसेफ रुआंसी आवाज में बोला।
'सर, यहां अवश्य कोई शैतानी शक्ति रहती है। हम शोर सुनते रहे, मानो की यहां का सामान कोई उलट-पुलट कर रहा है। जब भी हम शोर वाले स्थान पर पहुंचते थे तो तुरन्त वहां वीरानी छा जाती थी और फिर दूसरी जगह शोर प्रारंभ हो जाता था यार्ड के सेन्टर वाले ढेर के पास टॉमी को शायद किसी के होने का आभास हुआ, इसलिए वहां जाकर वह कुछ सूंघ रहा था। इसके बाद टॉमी के कराहने की आवाज आने लगी। मैं इसके निकट पहुंचा तो पाया कि यह तारों के बीच फंसा हुआ है। मैं किसी भी प्रकार से इसे आजाद नहीं करा पा रहा था...और यह कबाड़ में धंसता ही जा रहा था। इसे इतना दर्द हो रहा था कि मेरे द्वारा छुड़ाने का प्रयास करने पर इसने मुझे काट लिया, देखिए...।"
चौकीदार ने जोसेफ को अपना हाथ दिखाया, जहां टॉमी ने काटा हुआ था। वहां टॉमी के दांतों के निशान बने हुए थे। जोसेफ ने चौकीदार के पीछे की तरफ दरवाजे की ओर झांक कर देखा।
"अच्छा! यह सब कहां पर हुआ था? चल कर मुझे दिखाओ...।" बेचैन भाव से जोसेफ ने पूछा। जबकि वह स्थान कौन सा हो सकता है, इसका अनुमान उसे हो चुका था। फिर भी वह पुष्टि करना चाहता था।
"सर...यह कुत्ता?" "यह तो अब गया ही समझो...।"
चौकीदार जोसेफ के आगे चलता हुआ कह रहा था-“सारी सर! भरपूर प्रयास के बाद भी हम नहीं जान पा रहे थे कि वह शोर कहां से और क्यों उठ रहा था? टॉमी के घायल होने के बाद वह डरावना शोर भी बन्द हो गया...।"
"अच्छा चलो, वह स्थान बताओ।"
फ्लड लाइटों के प्रकाश से चमकते व नष्ट हो गये कारों के ढांचों के मध्य वह दोनों उस और बढ़े, जहां धातु की लाशें एक के ऊपर एक फंसाई गई थीं।
क्रेन एक ओर खड़ी थी। जोसेफ के अनुमान के अनुरूप यार्ड के मध्य में चौकीदार उसी ओर चला जा रहा था, जिस स्थान पर चार बाई चार फुट के लोहे के ताबूत में जोसेफ ने अजनबी की लाश दफन की थी। वह अपने सिर में भारी तनाव अनुभव कर रहा था। उस तनाव को वह नजरअंदाज करने का प्रयास कर रहा था। फिर भी उसे लगा कि वह तनाव वाली भनभनाहट वहां स्थित फ्लड लाइटों में से एक में से निकल रही थी। चौकीदार ने कबाड़ के एक भाग की ओर संकेत करते हुए कहा
"यह है वो स्थान सर...
वहां पर काफी खून बह रहा था। यह निश्चय ही कुत्ते टॉमी का खून था। वह परेशान मन सोचने लगा
'अब क्या करूं...?'
"अच्छा हो कि अब हम पुलिस को अवश्य सूचित करें।" चौकीदार ने परामर्श देना चाहा।
लेकिन जोसेफ भीतर-ही-भीतर भयभीत था कि पुलिस जाने यहां से क्या ढूंढ निकालें? वह तुरन्त बोला- “नहीं...कोई आवश्यकता नहीं है।"
एकाएक रोशनियां बन्द होनी प्रारम्भ हो गयीं। फिर एकदम चुप्पी सी छा गयी। तभी आफिस के एकदम निकट की रोशनी बन्द हो गयी।
वह दोनों एकदम वापस मुड़े। देखा कि कम्पाउंड के अंतिम छोर पर वह रोशनी बंद हुई थी। फिर सिलसिलेवार एक-एक कर कबाड़खाने में जगह-जगह लगीं रोशनियां बंद होती चली गयीं। थोड़ी देर में सारा कबाड़घर अंधेरे के साये में गुम हो गया।
आखिरी रोशनी भी बुझी तो चौकीदार बोल उठा- “पावर फेल्योर!" जोसेफ के मन में फौरन अपनी सुरक्षा की फिक्र जागी। वह जानता था कि यह कोई सपना नहीं कि जागकर स्वयं को अपने घर में पायेगा। इस समय सचमुच वह अपने कबाड़खाने में था। अंधेरे में हाथों से टटोल कर चौकीदार का सहारा लिया और उसके हाथ से हाथ टकराते ही वह अचानक उछल पड़ा और बोला"रोशनी करो....।
" चौकीदार ने कमर में लटकी टार्च निकालकर सामने वाले कबाड़ के ढेर पर रोशनी डाली।
जोसेफ ने कहा- “बचकर चलो...कोई तार-वार न उलझ जाये। हम अब आफिस की ओर चल रहे हैं...।” उनके घूमते ही पीछे के ढेर में कोई आवाज सी हुई। चौकीदार ने तुरंत उधर रोशनी डाली।
“आगे बढ़ो...।"
"उधर कुछ है। मैंने उधर प्रकाश देखा है... । कोई लपट या फिर...।” चौकीदार ने सावधान किया।
"मैं कहता हूं कि चलो...।"
“आप जरा रुकें तो...।" टार्च बुझाते हुए चौकीदार ने कहा। अब वे अंधेरे में घिरे हुए थे। न चाहते हुए भी जोसेफ ने मुड़कर देखा। उसका दिल जोरों से धड़क रहा था।
छोटे-बड़े, टूटे-फूटे टुकड़ों के कबाड़े के ढेर के नीचे की तरफ पीछे वाले हिस्से में धातु के जाने कितने टुकड़े एकत्र थे और उन्हीं में जोसेफ को कुछ चमकता दिखा, धीमा सा प्रकाश। अन्दर मानो नन्हीं चिंगारियां छिटक रही थीं अथवा किसी नन्हीं टार्च के प्रकाश में देखा जा रहा हो।
"तुरन्त यहां से निकलो...।" बेचैन जोसेफ ने कहा। "ठहरिए तो सही...मुझे कुछ दिख रहा है।" जोसेफ से स्वयं को छुड़ाता चौकीदार बोला।
"गॉड नोज वहां क्या है... ! मैं पुलिस को बुलाता हूं।" जोसेफ ने कहा। उस की आवाज कंपकपा रही थी।
जोसेफ पीछे को हटा। किंतु एक ढांचे पर चढ़ते हुए चौकीदार ने उसके पीछे झांकने का प्रयास किया और टार्च चलाकर वहां प्रकाश डाला।
"मैं कहता हूं...निकलो।"
"रुकिये तो सही...।" टार्च का प्रकाश डालते हुए चौकीदार और दूर तक बढ़ा तथा कबाड़ के पीछे झांकना चाहा।
जोसेफ को महसूस हो रहा था कि वह पुनः उसी कुछ दिन पूर्व के पलों में जा पहुंचा है, जब उसने अजनबी की लाश ठिकाने लगाने को क्रशर चलाया था और क्रशर की घरघराहट के साथ इंसान की चीखें भी शामिल हो रही थीं। जबकि आज क्रशर भी नहीं चल रहा था और चीखें आ रही थीं।
लेकिन यह सच्चाई थी। भ्रम नहीं। लेकिन यह चीखें चौकीदार के गले से निकल रही थीं। फिर भयभीत जोसेफ ने जो देखा, उससे वह सहम कर रह गया।
लगा कोई अदृश्य शक्ति चौकीदार की झुकी गर्दन को दबोचकर कबाड़ के विशाल ढेर के बीच में खींचे ले जा रही है। उसके हाथ से छूट कर टार्च कबाड़ के किसी हिस्से में जा फंसी। टार्च अब तक भी जल रही थी
टार्च के धीमे प्रकाश में वह चौकीदार के छटपटाते शरीर को देख रहा था। वह हाथ-पैर पटक कर बचना चाह रहा था। लेकिन अदृश्य बंधन में फंसता जा रहा था। अचानक कबाड़ के बीच स्थान खाली हुआ और भयानक लम्बी चीख मारता चौकीदार का शरीर उस कबाड़ के ढेर में समाता चला गया। चिंगारियां फिर छिटकीं।
चीख मारकर भयभीत जोसेफ घबराकर भाग निकला। लेकिन उसे शायद विलम्ब हो चुका था। अंधेरे में भी लगा कि उसके सामने कोई खड़ा है।
तभी उसका माथा किसी चीज से टकराया तो उसकी आंखों के आगे अंधेरा छा गया। कराहता हुआ वह नीचे जा पड़ा। हाथ उठा कर उसने सिर को छुआ तो उसके हाथ भीग गये थे। शायद उसके माथे से खून बह रहा था। वह एक पुरानी ब्यूक कार के गार्डर से टकराया था।
लेकिन हैरत की बात यह थी कि जब वह इधर आये थे तो यह गार्डर कार के बाहर निकला हुआ नहीं था।
वह अपने पीछे कबाड़ में उलटने-पलटने की आवाजें सुन रहा था। फुर्ती से उछलकर वह फिर अंधेरे में दौड़ पड़ा। वह प्रयास कर रहा था, वह आफिस तक पहुंच जाये बिना राह भटके।
आज उसे अपना कबाड़ गोदाम ही पराया लग रहा था। वह दिग्भ्रमित हो चला था। वह समझ नहीं पा रहा था कि वह किस तरफ जा रहा है, कहां पहुंचेगा? जगह-जगह लगे धातु के ढेर उसे विचित्र से दिख रहे थे। वह ऐसा महसूस कर रहा था कि उसे रास्ते से भटकाने के लिए कोई आलग आलग जगहों पर सामानों के ढेर लगा रहा है। उसे लग रहा था कि किसी भूल-भुलैया में वह चीखता-हांफता दौड़ रहा है।
वह कभी किसी बड़े लोहे के पीस से टकरा जाता, कभी किसी सरिये अथवा तार में फंस जाता। फटकर उसके बदन के कपड़े चिथड़े बन चुके थे और वह किसी अंधे की भांति दौड़ रहा था।
एकाएक अंधेरे में उसे पीछे से कुछ चरचराने की आवाज आयी। वह बड़बड़ाया-'माई गॉड...प्लीज हैल्प मी...।'
और वह फिर धरती पर जा गिरा। पीड़ा से बिलबिला कर करवट बदलते हुए वह निकट पड़े कार के ढांचे के नीचे सरकने लगा।
तभी बीच के ढेर से आतीं आवाजें बन्द हो गईं। अपनी उखड़ी सांसों पर नियन्त्रण करने का विफल प्रयास करते हुए जोसेफ को अब बीच वाला ढेर दिखाई नहीं दे रहा था। मध्य में दूसरे ढेर अड़चन बने हुए थे। न हरकत और न कोई अब शोर-शराबा सुनाई दे रहा था।
जोसेफ ने अनुमान लगाने का प्रयास किया कि वह इस समय यार्ड में कहां खड़ा हुआ लेकिन इसमें विफल रहा। निकट लगे कबाड़ के अंबार उसे अपरिचित लग रहे थे। आंखें चौड़ी करते हुए वह स्थिति समझने का प्रयास कर रहा था। उसने अनुमान लगाना चाहा कि बीच वाले ढेर से वह कितनी दूर आ चुका है? इसी दौरान उसे फिर एक आवाज सुनाई दी। उसके दाईं ओर एक छनछनाहट की आवाज सुनाई दी, जो निश्चय ही बीच वाले ढेर से नहीं उठी थी।
जोसेफ के मन में आशा का संचार हुआ कि शायद उसके नौकरों, गाइडों अथवा चौकीदारों में से कोई वहां आ पहुंचा है, खुले मैदान में कोई दिख रहा था। जैसे कोई झुका हुआ लम्बे कद का उछलता हुआ आ रहा हो।
कभी-कभी ठहर कर वह फिर आगे बढ़ रहा था। उसके इस प्रकार चलने से ही छन-छनाहट की आवाज उभर रही थी। जोसेफ ने फिर यार्ड में एक कार की बैटरी तीव्र गति से एक ओर लुढ़कती देखी, जिसका रुख बीच वाले ढेर की तरफ ही था।
उसके आस-पास जो भी हो रहा था, देखकर उसके दिमाग की नसें चटक रही थीं। कबाड़ खुद से चल रहा था। टायर भी अपने आप ही उठकर दौड़ रहे थे। हैडलाइट्स, सीटें आदि अपने आप ही हरकत में थे। और तो और, उसे एक रियर व्यू मिरर फुदकता नजर आया। इन सब बातों पर कैसे यकीन किया जा सकता था? जबकि यह सब उसके आसपास घट रहा था।
इस प्रकार कुछ भी किसी भयानक सपने का भाग ही हो सकता था। उसका विचार था कि सम्भवतः वह जाग जायेगा।
अब बीच वाले अंबार से पुनः घरघराहट, खनाक-पटाक के आवाज होने लगे थे। कार के ढांचे के नीचे छिपे जोसेफ ने स्वयं को और भी सिकोड़ लिया। वह सोच रहा था कि यह सच्चाई नहीं है, बल्कि वह कोई सपना देख रहा है।
उसके कानों में लोहे की वस्तुओं के टकराने, उन्हें खींचे जाने और फंसने आदि के स्वर गूंज रहे थे। थोड़ी-थोड़ी देर में वहां से चिंगारियां भी उठती नजर आ रही थीं, वह दो घंटे तक इसी स्थिति में पड़ा रहा। और इसी अवधि में निरन्तर वह यही मान रहा था कि वह सपनों में खोया है।
जाने कब वह आवाजें बन्द हो गयीं। जोसेफ ने आंखें मिचमिचाई, कि सपना खत्म हो गया। अब जाग जाना चाहिए। कोई बड़ा चीज़ अंधेरे में खांसी, जिसके गले से खरखराहट आ रही थी। उस आवाज में धमकी के साथ क्रोध भी था। वह शायद भूखी भी थी और वह किसी की तलाश में थी। हो सकता है यह तलाश जोसेफ की हो, फिर वह जोसेफ की तरफ बढ़ी। जोसेफ एकदम कार के नीचे से निकल गया।
माहौल में अब उस शख्सियत की दहाड़ प्रतिध्वनित हो रही थी, आवाज अंधकार में कबाड़ से टकराकर सब तरफ गूंज रही थी।
जोसेफ ने एक ओर का कुछ अनुमान लगा लिया था और उधर ही जम्प लगा दी। 'किसी प्रकार यहां से निकल जाऊं...।'
सोचते हुए जोसेफ अपने ऑफिस में पहुंचना चाहता था। उसने एक चक्कर काटा। लेकिन सब व्यर्थ । सब कुछ नया-नया हो रहा था । धातु के ढेर को पार करते ही, एकदम राक्षस जैसी कोई भारी चीज उसकी ओर झपटी। वह भाग रहा था...और बस भागता ही जा रहा था।
इस समय उसका अपना ही कबाड़खाना उसके लिए भूल-भुलइया सिद्ध हो रहा था और वह इसमें भटक रहा था तथा कोई अज्ञात शख्सियत उसके पीछे लगी थी।
सामने आये एक इंजन को पार करता हुआ जोसेफ एक अंजान गली में प्रवेश कर गया। उसके पीछे आ रहीं आवाजें अब फुफकारने लगी थीं। आभास हो रहा था मानो कोई जानवर हांफ रहा है। जोसेफ ने सांस थाम ली और छिपता सा एक और बैठ गया। अंधेरे में गुर्राहट की वह आवाजें एक तरफ जाकर खामोश हो गईं। सब शांत हो जाने पर एक गहरी सांस खींच कर जोसेफ कबाड़ में भटकता हुआ एक दिशा में बढ़ा अपने ही हाते में वह लगातार अपना ही ऑफिस ढूंढ रहा था।
एक आर्क लाइट उसे अपने बायीं ओर आकाश की तरफ सिर उठाये दिखाई दिया, तब उसी को अपने रास्ते की पहचान बनाकर वह उधर बढ़ने लगा।
इसके बाद वह उस आर्क लाइट के पास से निकल गया। तब उसे एक टूटा मुड़ा गार्टर नजर आया। जिसका अर्थ था कि वह अपने ऑफिस के निकट ही था। वह झाड़-झंकाड़ में मार्ग खोजता उस आर्क लाइट से गुजरता हुआ आगे बढ़ा।
रास्ते में जगह-जगह अवरोध बने भारी मात्रा में एकत्र कबाड़ को उसने अपने होश-हवास में पार किया। तभी एक लॉन मूवर से टकरा गया, जो एक तरफ जा गिरा और वह इसकी आवाज से अचकचा गया, क्योंकि उसे डर हुआ कि इस आवाज से उसके पीछे लगे राक्षस को उसका पता लग जायेगा। लेकिन इसके बाद कोई आवाज न आई।
अब जोसेफ को कुछ चैन सा महसूस हुआ और उसमें चेतना का संचार भी होने लगा। क्योंकि उसे अपने ऑफिस जैसी ही आकृति दिखाई दे रही थी। वही कम्पाउण्ड का जंगला भी था, जहां कार उसकी प्रतीक्षा में थी और उसके पीछे यार्ड का खुला द्वार नजर आ रहा था। उसने सोचा, बस एक मिनट बाद वह कार में फरटि भरता वहां से निकल जायेगा।
जोसेफ आगे कार की तरफ लपका। जल्दबाजी में उसने इधर-उधर निगाह डाली, तभी धातु की किसी चीज से उसकी ठोढ़ी पर खरोंच आ गई। मन-ही-मन में गाली बकते उसने ठोढ़ी को हाथ से दबाया तथा जैसे-तैसे कूद-फांद करता हुआ परछाई सी दिख रही अपनी कार तक पहुंच गया। उसे याद था कि उसने डेशबोर्ड में ही चाबियां छोड़ी हुई थीं और दरवाजे भी बन्द नहीं थे। अब बस कुछ ही पलों की बात थी।
बहुत तेजी से बढ़कर उसने पूरी शक्ति से कार का दरवाजा खोलकर ड्राइविंग सीट संभाली, धड़कते दिल से उसने इग्नीशन में चाबी घुमानी चाही। लेकिन...चाबियां वहां से गायब थीं।
यह सोचकर कि चाबियां नीचे न गिर गई हों, उसने नीचे हाथ घुमाया। लेकिन वहां चाबी नहीं मिल सकी।
एक छोटी सी प्रार्थना दोहराते हुए उसने हाथ स्विच की तरफ बढ़ाकर लाइट जलानी चाही, लेकिन स्विच अपने स्थान पर नहीं था। फिर भी एक स्विच उसके हाथों में अवश्य आ गया, जो उसके लिए अपरिचित था। जोसेफ ने उसे ही ऑन कर दिया, जिससे कमजोर सी पीली रोशनी का एक बल्ब उसके सिर के ऊपर प्रकाशित हो उठा।
प्रकाश होने पर जोसेफ ने देखा कि कार तो उसकी है ही नहीं। वह तो किसी अन्य की गाड़ी में बैठ गया था। इस समय वह मुड़ी-तुड़ी धातु और तारों के भयानक सपने में खो गया था। लगता था, यह जल्दी में बनाई गई कोई चीज थी। नया कबाड़ा...जिस पर मुड़ी हुई एक रेडियेटर ग्रिल उफनती हुई भाप पैदा कर रही थी और जंग खाये पाइप कंपकपा रहे थे। उसे याद आया कि यह रेडियेटर ग्रिल तो उस अजनबी के लिए खरीदा गया था।
जोसेफ यह देखकर भयभीत हो उठा कि यह कार तो पूरी तरह उन सामानों से तैयार की गई थी जो उसने खतरनाक अजनबी के लिए खरीद कर अपने यार्ड में एकत्र कर रखा था।
किसी अनोखे तरीके से उन सब सामानों को आपस में वैल्ड किया गया था। उसका पूरा ही डिजाइन अनूठा दिख रहा था। इस समय वह एक ऐसी मशीन में सवार था जो देखने में किसी कार जैसी सूरत की तो थी, लेकिन किस प्रेत जैसी नजर आ रही थी।
उसे अनुभव हुआ मानो यह रहस्य खुल गया है कि वह कौन सी शख्सियत यार्ड में मौजूद थी, जो काफी दूर तक उसके पीछे आई थी। इसके बाद वह जो देखने से बच रहा था, लेकिन देखना पड़ा। डेशबोर्ड के नीचे कोई चीज रखी थी। यह चौकीदार का कटा हुआ सिर था, जो उसे घूरे जा रहा था...उसकी आंखों में तार चुभे हुए थे।
अचानक वह चिल्ला पड़ा। वह उस सिर को देखकर नहीं चिल्लाया था, बल्कि वह, उस चीज पर जिस पर सिर टिका हुआ था। सारे तार उसी के अन्दर गए हुए. थे, जो चौकीदार की आंखों में घुसे हुए नजर आ रहे थे।
वह बड़ी चीज धातु का वह टुकड़ा थी जिसे जोसेफ ने कबाड़ के विशाल ढेर के नीचे पहुंचा दिया था। इसी टुकड़े में अजनबी की लाश दफन थी।
अब वह कार उसके सामने मौजूद थी। यक-बयक आंखों के घेरे की वायरिंग पटपटाई और चौकीदार के कटे हुए जबड़े हिले। जोसेफ ने दिखा कि जंग खाई विण्ड स्क्रीन के नीचे इस मशीन की हेड लाइटें प्रकाशमान हो उठी हैं। मानो यह चीज अब देख सकती थी, उसकी आंखें बन गई थीं। बाहर भागने के लिए जोसेफ ने दरवाजे का हैंडिल पकड़ना चाहा।
लेकिन वहां कोई हैंडिल नहीं था। मारे डर के उसकी घिग्घी बंध गई। "हे प्रभु! मेरी रक्षा कर...।" वह धीरे से बुदबुदाया।
जोसेफ को ऐसा लगा कि कुछ उलझे हुए तार उसकी तरफ झपटे हैं और जैसे उसे कार की सीट के साथ बांधा जा रहा है। यह कोई भिन्न प्रकार की सीट-बैल्ट थी, जिससे जोसेफ को बांध लिया गया था। व्याकुल हो उठे जोसेफ ने बहुत जोरों के साथ हाथ-पैर मारते हुए अपना पीछा छुड़ाने का प्रयास किया। लेकिन तार बड़े मजबूत थे।
छूट भागने के प्रयास में वह यह भी न देख पाया कि आहिस्ता-आहिस्ता डेशबोर्ड खुल रहा है जिससे भाप निकलनी प्रारंभ हो गई है।
जैसे ही उस कार का इंजन जागा, जिसका प्रत्येक पार्ट अपने में एक खूनी घटना समाये हुए था और नीली रोशनी चमकने लगी।
तभी एक जंग खाया और तेल में डूबा पाइप डेशबोर्ड से बाहर आया तथा पूरी ताकत से फेंके गए भाले की भांति उसके सीने में जा घुसा। उसके मुंह से भयानक चीख गूंज उठी।
सब कुछ इस प्रकार घटित हुआ कि जोसेफ हैरान भी न हो पाया। पाइप उसके दिल तक जाकर रुक गया और किसी भूखे की तरह उसके दिल को चूसना प्रारंभ कर दिया। उसके खून को वह मशीन पेट्रोल की भांति चूस रही थी और ऐसे प्रयोग करने वाली थी, मानो उसे ईंधन मिल गया हो।
खुराक मिलने पर वह मशीन घरघराहट की आवाज निकालती हुई रास्ते में फैले कबाड़ को कुचलते हुए भयानक गति के साथ भाग निकली। उसके भीतर से निकलने वाली दहाड़, खनक और शोर-शराबा शीघ्र ही चारों ओर व्याप्त अंधेरे में समा गए थे। अब अगर कुछ था तो बस खामोशी! खामोशी और खामोशी!
शुरुवात की कहानी जानने के लिए पैशाचिक मशीन भाग 1 को इस लिंक पर क्लिक करके पढ़ें |
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..... Pishach Ki Kahani: Paishachik Machine [ Ends Here ] .....
Team Hindi Horror Stories
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